लिखते है सदा उन्हीं के लिए...
जिन्होंने हमें कभी पढ़ा ही नहीं.. मुझ पर सितम ढहा गए मेरी ही ग़ज़ल के शेर, पढ़-पढ़ के खो रहे हैं वो गैर के ख्याल में। आज उस ने एक दर्द दिया तो मुझे याद आया, हमने ही दुआओं में उसके सारे दर्द माँगे थे। कुछ लोग खोने को प्यार कहते हैं, तो कुछ पाने को प्यार कहते हैं, पर हकीक़त तो ये है, हम तो बस निभाने को प्यार कहते हैं… |
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