माना बरसो से तुम साथ हो मेरे
न मेरी राहों पे तुम्हारे क़दमों के निशाँ हैं न मेरी मँजिलों का पता है तुम्हें कैसे कह दूँ जान! मैं हमसफर तुम्हें माना बरसों से रखते हो तुम ख़याल मेरा न मेरे जज़्बातों की है ख़बर तुम्हें न मेरे लफजों की है क़दर तुम्हें कैसे कह दूँ जान !मैं हमनवां तुम्हें माना बरसो से रिश्ता है तुम्हारा मेरा न मेरी मुस्कराहट में खिलखिलाते हो न मेरे अश्क़ अपने काँधे पे सजाते हो कैसे कह दूँ जान! मैं हमनशीन तुम्हें माना बरसों से मुझमें बसा घर है तुम्हारा न मेरी दिवारों पे यादें सजाते हो न मेरे आँगन में रजनीगंधा महकाते हो कैसे कह दूँ जान! मैं हमनफस तुम्हें! |
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