इक नदी किनारे बैठा
रेत के पन्नों पर, कुछ याद तूझे कर लेता हूं, कुछ सपने, कुछ पल, कुछ उमंग, सोच सोच कर लिख देता हूं, तुम उस नदी की इक कमसीन लहर समान हो जैसे, चुपके से अाती हो, छू मुझे वापस, घाट से चली जाती हो, बार बार क्यों, ऐसे सताती हो, मेरी रेतिले पन्नों, को तुम एक छण रौंद जाती हो... क्यों बार बार सताती हो... ले लो मुझे अपनी अागोश में, या मुझमें समा जाअो तुम, बार बार मेरे सपनों को न इस तरह मिटाअो तुम, न इस तरह मिटाअो तुम... (बीगदोस्त) इक नदी किनारे बैठा रेत के पन्नों पर, कुछ याद तूझे कर लेता हूं, कुछ सपने, कुछ पल, कुछ उमंग, सोच सोच कर लिख देता हूं, तुम उस नदी की इक कमसीन लहर समान हो जैसे, चुपके से अाती हो, छू मुझे वापस, घाट से चली जाती हो, बार बार क्यों, ऐसे सताती हो, मेरी रेतिले पन्नों, को तुम एक छण रौंद जाती हो... क्यों बार बार सताती हो... ले लो मुझे अपनी अागोश में, या मुझमें समा जाअो तुम, बार बार मेरे सपनों को न इस तरह मिटाअो तुम, न इस तरह मिटाअो तुम... (बीगदोस्त) https://farm5.staticflickr.com/4336/37070227570_897550a24a_b.jpg |
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