एक जोहरी की कहानी जिसने एक बच्चे को तरास कर एक हीरा बनाया।
नारायण दास के पिता एक नामी जोहरी थे। पुरा परिवार खुब अच्छे से अपना जीवन यापन कर रहा था। एक दिन नारायण के पिता का निधन हो गया। नारायण बहुत छोटा था और अपने पिता का काम नहीं संभाल सकता था। पिता के जाने के बाद परिवार एक दम टूट गया। धीरे धीरे परिवर पर कर्ज का बोझ बढ़ने लगा। कुछ ही दिनों में ये हो चला कि परिवार के पास खाने को कुछ ना रहा। उनको दूसरों की मदद का मोहताज होना पड़ा। एक दिन माँ नीलम का हार देकर बोली की "बेटा इस हार को अपने चाचाजी के पास ले जाओ। इसको बेच कर जो पैसे मिलेंगे उससे घर का खर्चा चल जायेगा। नारायण ने माँ की बात मान कर ऐसा ही किया। नारायण दुकान पर जाकर बोला कि चाचाजी मां ने यह हार दिया है। इसको बेचना है। चाचाजी ने हार को अच्छी तरह से देखा परखा और कहा कि बेटा अभी बाज़ार बहुत मंदा है, अभी इसके उचित दाम नहीं मिल पाएंगे। मां को बोलना कि कुछ दिन रुक जाए, जब बाज़ार सही होगा तब बेच देना। इसके बाद उन्होंने कुछ रुपये नारायण को दिए और बोले कि कुछ दिन इनसे काम चला लो। इसके बाद चाचाजी ने बोला कि बेटा तुम कुछ समय के लिए दुकान पर आ जाया करो, यहां काम कर लो। तुम्हें भी पैसों कि जरूरत है और मझे भी सहारा मिल जाएगा। नारायण ने ये बात मां को बताई और उनकी आज्ञा पाकर अगले दिन से दुकान पर जाने लगा। दुकाँन पर नारायण ने खूब मन से काम सीखा और बराबर काम करते करते उसको हीरों की अच्छी परख हो गई। ऐसे ही समय बीत गया और अब नारायण 20 साल का हो गया था। लोग दूर दूर से अपने हीरों की जांच करवाने के लिए नारायण दास के पास आते। अब उसका कर्ज भी समाप्त हो गया था। और परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी हो गई थी। एक दिन नारायण के चाचाजी ने बोला कि नारायण अब बाजार में भाव अच्छा है, अपनी मां से वो हार ले आओ जिसको तुम पहले दिन लाए थे। नारायण को याद आ गया कि चाचाजी किस हार की बात कर रहे हैं। नारायण अपनी मां के पास गया और उनसे वो हार मांगा। माँ न हार नारायण को दे दीया। हार को लेकर नारायण के मन में सबसे पहले ख्याल आया कि क्यूं ना इस हार को जांच लिया जाए। उसने हार को जांचा तो पाया कि हार तो नकली है। इसके बाद नारायण ने हार वहीं रख दिया और वापस दुकान कि तरफ चल पड़ा। दुकाँन पर पहुंचने पर चाचाजी ने नारायण से हार मांगा। इस पर नारायण ने सारी घटना बता दी और बताया की वह हार नकली है। इस पर चाचाजी बोले कि बेटा जब तुम पहले दिन हार लाए थे मझे तभी पता चल गया था कि हार नकली है, लेकिन उस समय अगर मैं तुमको बता देता तो तुम सोचते कि बुरा वक़्त आया है तो चाचाजी हमारे हार को भी नकली बताने लगे। इसलिए मैंने तुमसे बज़ार का भाव कम है बोलकर मना कर दिया था। लेकिन मैं यह भी जानता था कि तुम्हें पैसों की कितनी जरूरत थी। और इसीलिए मैंने उस हार को ना लेकर, इस हीरे को यानी तुमको तराशना उचित समझा। और देखो आज मेरा हीरा उस हार से कहीं ज्यादा कीमती निकला। |
Comments