कभी यूँ मिलें कोई मसलेहत, कोई ख़ौफ़ दिल में ज़रा न हो
मुझे अपनी कोई ख़बर न हो, तुझे अपना कोई पता न हो वो फ़िराक़ हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन वो ग़ुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग़ बन के जला न हो कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, दिलो-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं मगर उस नगर में न क़ैद कर, जहाँ ज़िन्दगी का हवा न हो वो हज़ारों बाग़ों का बाग़ हो, तेरी बरक़तों की बहार से जहाँ कोई शाख़ हरी न हो, जहाँ कोई फूल खिला न हो तेरे इख़्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज़ दे यूँ दुआयें मेरी क़ुबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ न हो कभी हम भी जिस के क़रीब थे, दिलो-जाँ से बढ़कर अज़ीज़ थे मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला न हो |
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मगर उस नगर में न क़ैद कर, जहाँ ज़िन्दगी का हवा न हो